मजबूर की भी आँखों में, ख़्वाब होते हैं
यारों उनके भी दिल में, इंक़लाब होते हैं
न होते ख़्वाब पूरे ये विधाता का कर्म है,
वर्ना दिलों में तो तूफ़ान, बेहिसाब होते हैं
न रोते हैं वो रोना किस्मत का किसी से,
उनके तो रात दिन, खुली किताब होते हैं
न करते हैं समझौता वो अपने ईमान से,
यारा वो तो अपने दिल के, नवाब होते हैं
अमीरों में देखे हैं बेचैनियों के अँधेरे मगर,
उसके दिल में तो सुकूं के, आफ़ताब होते हैं
उनको न जोड़ने की फ़िक्र है न तोड़ने की,
उनके पास मुश्किलों के, हर जवाब होते हैं
धन की चाहत तो होती है उनको भी “मिश्र",
मगर उनके सब्र के फंडे, लाजवाब होते हैं
कवि - श्री शांती स्वरूप मिश्र