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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

दास्तां लिए फिरते हैं..

इस जहाँ में सांसों का, एहसान लिए फिरते हैं..
दबे हुए से जाने कितने, अरमान लिए फिरते हैं..।

हम हर वक्त ढ़लते रहे, ज़माने के मुताबिक मगर..
वो मेरे ख़िलाफ़, नुक्स–ए–बयान लिए फिरते हैं..।

माना अपनी तारीफ़ पर, वो निगाह झुका लेते हैं..
मगर दिल में फिर भी,हज़ार गुमान लिए फिरते हैं..।

जाने किसकी वज़ह से, मौज़ू है ये शहर-ए-ख़ूबाँ..
हम बेवज़ह क्यूं सर पर, आसमान लिए फिरते हैं..।

ये हयात है, जाने किसकी मिल्कियत "क्षितिज"..
फिर भी हम तो मोहर-ए-फ़रमान लिए फिरते है..।

इस कदर शोरो–गुल है, कि कुछ भी सुनता नहीं..
सब अपने दिल में दिल की दास्तान लिए फिरते हैं..।

हमारी सूरत तो वहीं है, मगर कोई पहचानता नहीं..
वो जाने कितने पर्दे,आंखों दरमियान लिए फिरते हैं..




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (2)

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रीना कुमारी प्रजापत said

Kya baat hai 👌 subaanallah bahut khoob

Lekhram Yadav said

बहुत सुन्दर रचना, आपको सादर नमस्कार

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