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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

शहर के हालात से रूबरू कराती एक गजल - क्यूं शहर आ गए

कापीराइट गजल

छोड़ कर गांव जब हम शहर आ गए
यह राज सारे शहर के नजर आ गए

उजाले हैं कम यहां ये अन्धेरे हैं बहुत
हर कदम पर अन्धेरे, नजर आ गए

आदमी की यहां पर कोई कीमत नहीं
हर किसी पे जुर्म जब, कहर ढ़ा गए

प्यार रिश्तों में अब ये झलकता नहीं
हम को रिश्ते यह झूठे नजर आ गए

कमी नहीं है कोई ये हादसों की यहां
तर लहू से जो दामन, नजर आ गए

शहर के लोग सब, जीते हैं खौफ में
हाथ दबंगों के जब, यूं कहर ढ़ा गए

पास रह कर भी सब अजनबी हैं यहां
राज अब ये सभी के, नजर आ गए

लौट जाएंगे हम अब, गांव को यादव
छोड़ कर गांव हम, क्यूं शहर आ गए

- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )


यह रचना, रचनाकार के
सर्वाधिकार अधीन है


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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (2)

+

श्रेयसी said

Sachhi rachnaa , saadar 🙏🙏

Lekhram Yadav replied

धन्यवाद सहित सादर नमस्कार श्रेयसी जी,

वन्दना सूद said

Bahut sahi likha aapne 🙏🙏👏👏👌👌आज भी छोटी जगह पर ही अपनापन रह गया बाक़ी सब स्वार्थ

Lekhram Yadav replied

धन्यवाद सहित नमस्कार वन्दना जी।

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