मेरी कविता..
कभी मंच समर्थित सी
कभी अकेलेपन से व्यथित सी,
तो कभी हृदय पटल पर
प्रकाशित सी..।
कभी मचलती धाराओं सी,
कभी देह की रक्त शिराओं सी,
कभी मन का दर्द समाए,
कभी पुलक–पुलक
हर्षित सी..।
कभी गलियों में बे–सबब डोलती,
कभी अकेले खुद से सतत बोलती
कभी अश्रु बन कपोल ढलती तो
कभी ज्ञानीजनों की गोद खेलती
कभी स्वजनों में भी
उपेक्षित सी..।
कभी वृक्ष लताओं पर लिपटी हुई,
कभी सरित नीर पर इठलाती सी,
कभी सागर गहराइयों में उतर रही
कभी हवाओं में तिनकों से उड़ रही
कभी शिलालेख सी अमिट हुई
कभी हृदय में
अलिखित सी..।
कभी चुभती ह्रदयशूल सी,
कभी फूलों सदृश सहलाती
कभी दर्द की वज़ह तलाशती
कभी बेवज़ह मन ही मन
मुदित सी..।
कभी सीधी राहों सी,
कभी मुड़ती पगडंडियों सी,
कभी अंगद पांव सी अडिग खड़ी
कभी ज़रा सी बात पर विचलित सी..
-पवन कुमार "क्षितिज"

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




