मन देखे जब तुमको तो बस भोग नज़र ही आता है,
पर मैं देखूं जब तुमको फिर तो मन ही ये मिट जाता है।
मन देखे जब तुमको तो बस घर्षण ही हो पाता है,
पर मैं देखूं जब तुमको तो सत्दर्शन ही हो जाता है।
फिर मैं सोचूं ये मन तो मेरा मुझको ही दम्भ दिखाता है,
ये सच के नाम पे बस मुझको एक परदा ही दिखलाता है।
सुंदरता क्या है तुममें अब ये मन बेचारा क्या जाने,
मुख में जो तुम्हारे ज्योति है वो ये अंधियारा क्या जाने।
मन मेरा हो या तुम्हारा हो, ये दोनों ही अज्ञानी हैं,
जीवन ये हमारा सतत् विशाल आह्लाद की कहानी है।
पर कौन हमें ये सत्य दिखाए , अमृत की वर्षा कर जाए,
कौन कहे सुंदरता की गाथा, कौन है उस आनंद का दाता।
हम तो अधरों पर ही अटके हैं और सुंदरता थोड़ी हटके है,
तन का कोई विश्वास नहीं, डूबो उसमें जिसका ह्रास नही।
पर इतना विशाल संसार में क्या, फिर तन इतना बेकार है क्या,
ये तन आनंद की सीमा है, और सीमित जीवन किसे जीना है।
बस प्रेम की सब खोज करो, कुछ और नहीं बस खुद का हौज भरो,
फिर सब कुछ नया हो जाएगा, बस प्रेम ही नृत्य दिखायेगा।
फिर पेड़ फूल पौधे हर कोई संग तुम्हारे गाएंगे,
और हम भी उस सत्य के साथ प्रेम में पड़ जाएंगे।