इस बार दिवाली मनाऊंगा ना एक लाइट लगाउंगा,
दीपक ही जलाऊंगा दो घर दिवाली मनाऊंगा
सब आधुनिक हो गए सबको इसमें खा लिया,
उस गरीब का तो सोचो जिसका घर का दीपक ही बुझा लिया
जब गया वह दीपक भेजना किसी दुकान के आगे बैठ गया ,
उसे उस स्थान से हटाने उसे दुकान का सेठ गया
लाइट तो अब आई है यह सब को भाग ग इस,
गरीबों का तो सोचो जब उनका बेटा भी कहता है पापा दीपावली आ गयी
किसका दिल नरम हो जब युग आधुनिकता वाला है,
गरीबों के दीपक लेलो जनाब वह भी बोल बच्चै वाला है
----अशोक सुथार