इस दुनियां की भीड़ में अकेले रह गए हैं अब हम,
बहुत ही तन्हा हो गए हैं अब हम।
कोई आए हमारी तन्हाई को दूर करे,
एक ऐसे दोस्त के इंतज़ार में हैं अब हम।
जोड़े जो मुझ मुफ़लिस से रिश्ता,
आए मेरी ज़िंदगी में कोई ऐसा फरिश्ता।
ना फिर कभी मुझे तन्हा होने दे,
ऐसा हो उसका मुझसे दिल का रिश्ता।
हो जाए मेरी ज़िंदगी में भी ये करिश्मा,
मिल जाए मुझे कोई मेरा अपना।
मेरे लिए जो मुसीबतों से लड़ जाए,
कर दे मेरा पूरा हर सपना।
तन्हाई के इस आलम में बस उसके आने की
आस लगी है,
उसके इंतज़ार में आंखें भी अब बरसने लगी है।
धड़कने बढ़ रही है लगता है अब वो फरिश्ता
आने वाला है,
जब मिलेगा वो तो कैसे अपना दर्द बयां करूंगी
अब यही फ़िक्र लगने लगी है।
✍️ रीना कुमारी प्रजापत ✍️