अदृश्य अजीज दिमाग से नही निकलती।
दर्शन की कोशिश बेकार मन में खटकती।।
प्रतिभा की धनी संघर्ष करके आगे आई।
आँख से ओझल नही सारी रात भटकती।।
खामोशी की जुबान जाने क्या-कुछ कहे।
बिस्तर भी करे क्या वो नींद को निगलती।।
दिन तो कट जाता 'उपदेश' कुछ करते हुए।
शाम से लीला शुरू कर रात भर पिघलती।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद