कविता : सुधरने की मंशा....
जहां से गुजरना था
गुजरा नहीं
मैं सुधरना था पर अभी
सुधरा नहीं
अब जा कर ऐसा
काम करना है
मैं काफी बिगड़ा मैंने
अब सुधरना है
भटक कर कभी इधर
कभी उधर जा रहा
लाख कोशिश करने पर
भी सुधर नहीं पा रहा
खुद न जानू मेरी
ये कैसी बीमारी है
सुधरने की मंशा
अभी मेरी जारी है
सुधरने की मंशा
अभी मेरी जारी है
netra prasad gautam