कविता - बातों को मानो....
मेरी बातों को मान जाओ तो सही
तुम दुल्हन बन मेरे घर आओ तो सही
तुम्हारे लिए मैं
बिल्डिंग बनाता
सारे घर को
फूलों से सजाता
सारा का सारा दिन
झूले पर झूलता
मुलायम से मुलायम
बिस्तर पर सुलाता
मेरी बातों को मान जाओ तो सही
तुम दुल्हन बन मेरे घर आओ तो सही
रोटी भी खुद
तवे पर बनाता
सब्जी भी खुद ही
कढ़ाई पर पकाता
खाना सोने की
थाली में खिलाता
पानी चांदी के
गिलास में पिलाता
मेरी बातों को मान जाओ तो सही
तुम दुल्हन बन मेरे घर आओ तो सही
तुम्हारे लिए पल पल
जीता पल पल मरता
तुम्हारा बदन सारा का
सारा मैं मालिश करता
तुम्हारी सेवा में दिन
रात प्रस्तुत होता
तुम्हारे कपड़े साड़ी और
ब्लाऊज सभी मैं धोता
मेरी बातों को मान जाओ तो सही
तुम दुल्हन बन मेरे घर आओ तो सही
भूल से भी किसी से
ईश्क न लड़ाता
तुम्हारे इर्द गिर्द ही मैं
हमेशा रहता
तुम्हें पेरिस और
लंदन ले जाता
जापान और अमेरिका
मैं तुम को घुमाता
जापान और अमेरिका
मैं तुम को घुमाता.......