क्यों ना हर घड़ी तुम्हीं को निहारा जाए।
खुद को तुम्हारी आँखों में उतारा जाए।।
खुद ब खुद मुस्कान बयाँ करती दास्ताँ।
खामोशी की मुद्रा में वक्त गुजारा जाए।।
सितारे की तरह चमकते इन दांतो पर।
अपना उज्जवल भविष्य सँवारा जाए।।
इतना आकर्षण पहले महसूस ना हुआ।
तुम्हारी गोद में शान्ति से सब हारा जाए।।
दुआ कुबूल हमारी भी और तुम्हारी भी।
जिन्दगी में ये पल 'उपदेश' दुबारा आए।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद