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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

अबतो यही है हमारा घर-ताज मोहम्मद

अबतो यही है हमारा घर।
जिसे लोग कहते है कब्र।।1।।

आना है तुमको भी यहां।
सबका होना है यही हश्र।।2।।

रिश्ते बहुत ही स्वार्थी हैं।
अब किसी की नहीं कद्र।।3।।

मिलता नही खुश बशर।
हर दिल मे रहता है दर्द।।4।।

मत आना मिलने मुझसे।
बाहर मौसम भी है सर्द।।5।।

देखा जो जाकर हवेली।
जमी है तस्वीरों पर गर्द।।6।।

ख्वाहिशे तेरी भी है बड़ी।
तभी है तुमपे इतना कर्ज।।7।।

शहर में पसरा है सन्नाटा।
फैले है यहाँ दहशत गर्द।।8।।

क्यो बस्ती है यूँ सूनसान।
गए कहाँ पे यहाँ के फर्द।।9।।

खुदा ने किए है सब पर।
लाजिम माँ बाप के फर्ज़।।10।।

ताज मोहम्मद
लखनऊ





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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (3)

+

रीना कुमारी प्रजापत said

बेहतरीन

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Sundar sadhe huye shabdon me behtreen rachna 👌👌

रमेश चंद्र said

रिश्ते बहुत ही स्वार्थी हैं। अब किसी की नहीं कद्र। Aapne bahut sundar Likha ha. Mitti se aaye hain ek din mitti m mil jaynge. Pta nahi kis bat ka guman hota h insano m ki dusmni chori jalan asi bhavanaye man m rkhta ha or hmesa dono hatho se sirf sametata rhta ha ki ye mera h ye mera ha. Jabki bahut ache se pta ha ki kuch bhi apna nahi ha. Yahi rh jayega sab.

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