कृष्ण भी तुम. अर्जुन भी तुम,
दुर्योधन भी..पितामह भी तुम !!
जिसे जिताना चाहोगे..??
बन जाओगे इक दिन वही तुम !!
धृतराष्ट्र भी है अपने अन्दर,
युधिष्ठिर की भी हो सच्चाई तुम !!
गुरू द्रोण हैं खुद में उपस्थित,
कर्ण को गले लगा लो तुम !!
किसे मिटाना चाहोगे..??
बस खुद को ही पहचानो तुम !!
संजय की आँखों से देखो,
खुद के तन की युद्धभूमि को !!
हर इक योद्धा लड़ने को आतुर,
आदेश करो बस खुद को तुम !!
जीतोगे तभी जब खुद के,
दुर्योधन को हराओगे तुम !!
--वेदव्यास मिश्र
सर्वाधिकार अधीन है