भोले शंकर, त्रिपुरारी,
सावन में आएंगे कांवड़िया भारी!
हर हर बम बम शोर उठे,
गूंजे गगन में जयकारा प्यारा!
भोले शंकर, त्रिपुरारी…
सावन में आएंगे कांवड़िया भारी!
शिवालयों में डमरू बजता,
नंदी संग है धूम मचता।
शिवभक्तों का कारवां चलता,
हर धड़कन में महाकाल बसता।
गंगा जल से अभिषेक करेंगे,
मन के पाप सभी दूर करेंगे!
भोलेनाथ! बम बम बोलेनाथ!
शिव शंभो शंकर महाराज!
जयकारा उठे हर गाँव शहर में,
सावन सजे तेरे दरबार में!
कैलाशपति के नाम का नारा,
हर दिल में आज लगे प्यारा।
जटाओं में गंगा की धारा,
नीलकंठ का रूप निराला।
भूतभावन की महिमा भारी,
डोल उठे शिव की सवारी!
भोलेनाथ! बम बम बोलेनाथ!
शिव शंभो शंकर महाराज!
जयकारा उठे हर गाँव शहर में,
सावन सजे तेरे दरबार में!
रुद्राभिषेक से कृपा बरसती,
भक्तों पर मुस्कान शिव की हस्ती।
मन में श्रद्धा सच्ची लाओ,
हर संकट से मुक्ति पाओ।
शिव की शरण जो भी आया,
सुख-शांति जीवन में पाया!
भोलेनाथ! बम बम बोलेनाथ!
शिव शंभो शंकर महाराज!
जयकारा उठे हर गाँव शहर में,
सावन सजे तेरे दरबार में!
हर हर महादेव! हर हर महादेव!
शिव के नाम से पावन हो ये खेत खलिहान!
हर हर महादेव! हर हर महादेव!
सावन में गूँजे भोले का गुणगान!
शिवरात्रि सा लगे हर दिन,
सावन में महकें मन बिन।
भस्म रमें महाकाल हमारे,
रखें कृपा से सब सुख सारे।
डमरू की धुन पे थिरकें पाँव,
शिव जी का हो सदा प्रभाव!
भोलेनाथ! बम बम बोलेनाथ!
शिव शंभो शंकर महाराज!
जयकारा उठे हर गाँव शहर में,
सावन सजे तेरे दरबार में!
हर हर बम बम! हर हर महादेव!
स्वरचित एवं मौलिक -
अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र'
यह रचना, रचनाकार के
सर्वाधिकार अधीन है
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