जिस शमा की लौ से रोशन सारा जहाँ है,
उनकी ही ये जमीं और उनका आसमाँ है।
खुली आँखों से कौन भला देख सका उन्हें,
बंद आँखों से देखो तो दिखेंगे वो कहाँ हैं।
ढूँढते फिर रहे उन्हें, इधर-उधर, यहाँ-वहाँ,
गौर से देखो, जर्रे-जर्रे में मौजूद निशाँ हैं।
देखते रहते हो बाहर, अंदर झाँक के देखो,
तुम जहाँ सोच भी नहीं सकते वो वहाँ हैं।
वो कहते हैं, तुम क्यों नहीं करते इबादत,
इबादत में शामिल मेरी सारी पंक्तियाँ हैं।
🖊️सुभाष कुमार यादव