कमलनयन नीरज सहित, रघुपति कै रघुराय।
बिनु चलैं मंजिल मिलय न, जिन्हेँ मिलय बौराय॥
जिनके अँगने वृक्ष है, तिनको मिलती छाँव।
जिन काटे न लागिहैं, भटकहिं गांवउ गाँव॥
मनुआ लगे न करम ते, चिकनी चुपरी बात।
ना वे कछु करि सकत हैं, ना ही करुवो आत॥
जिनकी ऊँची छावनी, तिनके ऊँचे ठाठ।
दिनवा करत मजूरी जो, उनकी औरहि बात॥
रब से कछु न मांगते, सबकी मंगत खैर।
ऐसे जनन ते आजकल, दुनिया रखिये बैर॥