किस्मत के फेरे
होते बहुतेरे
खुशी मिलेगी
या होंगें गम बहुतेरे
ये तो ऊपरवाला हीं
जनता है।
आदमी है
वक्त के हाथों
का खिलौना
वक्त आदमी से
खेलता है।
कभी रुलाता
कभी हंसता
वक्त वक्त पे
ना जाने कैसे कैसे
वक्त दिखाता है।
फिर आदमी अपने आप को
ना जाने क्यूं
सबसे ऊपर मानता है।
ना खुद पे काबू
रहता बेकाबू
सबको काबू में
करना चाहता है।
पर उससे भी ऊपर
है कोई ऊपरवाला
जो सबको काबू में
रखता है।
उसी के इशारों पर हीं
सबका वक्त वक्त पे
बदलता है।
फिर आदमी की क्या बिसात
अपनी हीं बिछाए जाल
में खुद ब खुद फंसता है।
वक्त बड़ा बलवान है भैया
वक्त से हीं वक्त पे हीं
वक्त से हीं सबकुछ होता है।
आदमी तो उस रब की
कठपुतली...
उसके हीं इशारों पे चलता है
उसके हीं इशारों से सब चलता है...