डॉ एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात"
अपनी राह का राही
मत कर तू तुलना जीवन की, किसी और के रंग ढंग से।
हर राह अपनी, हर पग अपना, क्या लेना दूजे के ढंग से?
सूर्य निकलता अपनी बेला, अपनी ही आभा लाता है।
चाँद भी आता जब है रात गहरी, शीतल चांदनी बरसाता है।
क्या कभी सूरज ने चाही, चाँद की शीतलता अपनाना?
क्या चंदा ने रवि की गर्मी, कभी चाहा खुद में समाना?
हर किसी का है समय निश्चित, अपनी चमक दिखाने का।
किसी की सुबह सुनहरी होती, किसी की रातें जगमगाने का।
तेरी भी बारी आएगी ज़रूर, मत हो निराश तू मन से।
अपनी प्रतिभा को पहचान प्यारे, चमक उठो अपने ही दम से।
क्यों बनना चाहे तू वैसा, जैसा दूजा कोई दिखता है?
तेरे भीतर भी है कुछ अनमोल, जो औरों में कहाँ मिलता है।
अपनी खूबियों को तराश तू, अपनी कमियों को कर दूर।
बन तू वो सितारा जग का, जिसका अपना ही हो नूर।
मत देख कि कौन कहाँ पहुँचा, और किसकी कितनी शान है।
तू अपनी मंज़िल का मुसाफिर, तेरा अपना ही आसमान है।
चल अपनी गति से, अपनी धुन में, मंज़िल तेरी ही होगी।
जब तेरा वक्त आएगा प्यारे, दुनिया देखेगी तेरी भी जोगी।
इसलिए छोड़ ये तुलना करना, ये तो है व्यर्थ का फेरा।
तू अनमोल है, तू अद्भुत है, तेरा वजूद सबसे गहरा।
बस अपने भीतर के सूरज को जगा, और चमक अपनी फैला।
जब तेरा समय आएगा, देखेगा ये जग तेरा ही मेला।