कैसे नियम हैं दुनिया के
कैसे नियम हैं दुनिया के
ईश्वर को सब माता पिता कहते
फिर भी उनके पास जाने के अजीब नियम बनाते
बहुत माननीय सन्त कहते हैं
सत्संग में सोते क्यों हो ?
भंडारे-लंगर में पेट भर खाते क्यों हो ?
मन्दिर में सज धज कर आते क्यों हो ?
विचारधारा है यह अपनी अपनी
यदि देवघर है घर माता पिता का
तो क्यों न मैं सज धज कर वहाँ आऊँ?
सत्संग सभा है मेरी माँ की गोद और प्रवचन मेरी माँ की लोरी
तो क्यों, मैं वहाँ सुख की नींद न पाऊँ?
भंडारा मेरी माँ के हाथ का खाना
तो क्यों न मैं भरपेट वहाँ खाऊँ?
ज़िन्दगी की उलझनों से निकल कर हम आते
भागदौड़ से थक कर दो पल जीने आते
अपने सुख दुख उन्हें सुनाने आते
जब मन्दिर की चौखट पर भी उनकी मर्ज़ी से ही आते
सत्संग सुनना या सुनकर सोना सब उनकी कृपा से ही पाते
तो क्यों सन्त जना हमको समझ न पाते ?
तो क्यों अपने ज्ञान के नियमों की लकीरें से हमारी आस्था को सच्चा न बताते ??
वन्दना सूद