भीग गई हो जो बरसात में, वो सच्चाई मैं जान गया,
आपकी भीगी पलकों का राज, आज मैं पहचान गया।
छत पर बैठी तन्हा हो, ये तन्हाई भी समझी मैंने,
आपके मन का कोना-कोना, दिल से पढ़ा मैंने।
जो दर्द आपने बहाया जल में, वो दर्द भी महसूस किया,
आपके हर आंसू की कीमत, मैंने मन से आंक लिया।
दीवानी हो जो बारिश की, दीवानी ये बात सही,
पर आपकी दीवानगी में भी, एक सादगी है कहीं।
पहचान लूं आपको पूरी, ये वादा मैं करता हूँ,
आपकी खामोशी को भी, अब शब्दों में पढ़ता हूँ।
आप अकेली नहीं इस बारिश में, मैं भी आपके साथ हूँ,
आपके दिल के हर एहसास में, मैं आपके पास हूँ।
अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र'
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