अब कहां हैं प्रेम त्याग बलिदान,
....कहां हैं संस्कार और प्यार,
कहां दिखती कोई मर्यादा परिवार में,
.... कहाँ रिश्ते बिकते हैं बजरों में,
कहाँ कोई संस्कृति को संजोना चाहता,
....कहाँ कोई अपनों पर रोना चाहता,
....कहाँ कोई अपनों पर रोना चाहता,
राजू वर्मा द्वारा लिखित
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