हम जो हम हैं, अपनी नहीं मानते,
काम नहीं करते, करते कुछ और l
एक चेहरे पर लगे हैं कई चेहरे,
दिखते कुछ हैं होते कुछ और l
रंग मिले जब दो तो ग़ज़ब करें,
मिलता कुछ है, रंग कुछ और l
हम बदलें या चाहे बदलो तुम,
फ्रेम वहीं हैं तस्वीरें कुछ और l
दबी जुबान से सब सच कहते हैं,
खतावार वही है सजा कुछ और l
जिनका जीवन जितना सादा है,
उनके चेहरे का है नूर कुछ और l
पढ़ कर नीति धरम की किताबें,
पंडित बन गए भीतर कुछ और l
सबके हमने ईमान धरम को देखा,
बिकते कहीं हैं झुकते कहीं और l
किससे गिला शिकवा क्या करिए,
दिखता कुछ है होता कुछ और l