जब तक है ढंका इश्क़,
तभी तक इश्क़ है !!
ज़ाहिर जो हुआ खुलके,
है इश्क़ कहाँ रहता !!
जब तक है छुपा इश्क़,
तभी तक वो इश्क़ है !!
इरादे जो हुए ज़ाहिर,
चाहत है कहाँ रहता !!
नदिया के पानी का,
अंदाज़ का क्या कहना !!
सागर से मिल गये फिर,
नदिया है कहाँ रहता !!
सर को न झुकाना,
हर जगह पे ऐ दोस्त !!
झुकने जो लगे हर जगह,
फिर सर भी नहीं रहता !!
अपनों से मिलके जाना,
तो तौर-तरीक़ों से !!
बाहर में मिले कोई,
पर अपना नहीं रहता !!
शायराना मेहफ़िल वेदव्यास मिश्र की रंगीन कलम से..
सर्वाधिकार अधीन है