ये कागज़ मेरा दोस्त और कलम मेरी ज़ुबान हैं...
कागज़ सुनता मेरी दर्द भरी दास्तां और
कलम उसे सुनाती है।
सोचो ये कागज़ ना होता कौन सुनता मेरे दर्दों को,
सोचो ये कलम ना होती कौन बयां करता
मेरी कहानी को।
ये कागज़ मेरा दोस्त और कलम मेरी ज़ुबान हैं..
कागज़ मेरी हर बात को राज़ बनाकर रखता है,
और कलम मेरा हर हाल जान लेती है।
सोचो ये कागज़ ना होता अपना राज़ किसे बताते हम, सोचो ये कलम ना होती मेरा हाल पूछता कौन ?
ये कागज़ मेरा दोस्त और कलम मेरी जुबान हैं...
कागज़ सुनता है मेरी हर वो बात
जिसे सुनता है ना और कोई, और कलम बयां करती मेरी हर वो बात
जिसे बयां मैं कर सकती नहीं।
सोचो ये कागज़ ना होता कौन सुनता
मेरी उन अनकही बातों को,
सोचो ये कलम ना होती कौन बयां करता
जिसे मैं बयां कर सकती नहीं।
"रीना कुमारी प्रजापत"