आँसुओ की बूंदे यों पलको में दबी रहती।
जमाने के सामने हर दर्द को छुपाती रहती।।
कुछ फर्ज ऐसे भी निभाने पडते परिवार में।
उसी से इज्जत सभी की बेशक बनी रहती।।
तजुर्बा हो गया रिश्ते-नातेदारो का 'उपदेश'।
ख्वाब रुखसत हुए जिम्मेदारी बढती रहती।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद