रहम हमने उस पर कितने ही किए,
बेरहम हमारे लिए वो बन गया।
जाने क्यों वो कमबख़्त,
गुनहगार हमारा बन गया।।
क्या था वो,
हमने उसे क्या बना दिया।
उसने ऐसा सिला दिया
कि हमे धूल में मिला दिया।।
खिदमत में उनकी,
हम हाज़िर हमेशा रहते थे।
जरूरत पड़ी जब हमे उनकी तो,
वो हाथ छुड़ाकर चल दिए।।
दुआएं हम करते थे,
उसकी सलामती की।
पर जाने क्यों वो नाचीज़,
बद्दुआएं हमे देते हैं।।
पेश हमेशा हम उससे,
इज़्ज़त से आते रहे।
और वो बेदर्दी,
रुसवा हमें करते रहे।।
- रीना कुमारी प्रजापत