कापीराइट गजल
जब, पास मेरे कोई, रास्ता न रहा
उन्हें हमसे कोई भी वास्ता न रहा
वो गुस्से में जब हमसे नाराज हुए
मनाने का उन्हें कोई रास्ता न रहा
तेरी नफरतों के आगे हार गए हम
आसां सफर में कोई रास्ता न रहा
वो देखते हैं सच झूठ के आईने में
सच बताने का कोई फायदा न रहा
वो दे रहे हैं हमको जख्म रोज नए
मेरे दर्द का अब कोई दायरा न रहा
वो, खेल रहे हैं मेरे, दिल से यादव
मेरे हाथों में कोई, फाखता न रहा
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
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