तुम अंखियों को पढ़ना क्या जानो
कल्पित कवि हो मेरा मन क्या जानो
खुशकिस्मत की तलाश में भ्रमित
हो रहा तन उसकी वेदना क्या जानो
कतराती नज़रे किसी और को यदि देखे
अन्दर बढती उम्मीदें वंदना क्या जानो
मचल ना बैठे भ्रमर कोई तो हो हंगामा
मेरे दिल में ख्वाब बहुत तुम क्या जानो
किस्से बहुत सुने 'उपदेश' मोहब्बत के
अब खुद की बारी आई तुम क्या जानो
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद