कापीराइट गजल
जिसको हमने दिल से चाहा उसने ही दिल तोड़ दिया
बीच भंवर में लहरों के संग उसने हम को छोड़ दिया
साहिल ने जब गले लगाया तब लहरों ने दामन थामा
छोड़ के हम को दलदल में रुख धारों का मोड़ दिया
हमने उन को कितना चाहा और कितना ही प्यार किया
यूं बीच अकेली राहों में फिर उस ने हम को छोड़ दिया
जब आती है याद तुम्हारी इन बागों और बहारों में
इन्हीं बहारों ने हमको फिर से तड़पा कर छोड़ दिया
क्यूं होता है अक्सर ऐसा अब ये हमको मालूम नहीं
प्यार की तपती राहों में क्यूं उस ने हम को छोड़ दिया
काश बता जाते हमको भी कारण था क्या जाने का
दुश्मन हो गए अपने सारे विश्वास हमारा तोड़ दिया
मचल रहे हैं ये भंवरे सारे थाम के यूं अपने दिल को
जब बगिया में कलियों ने भंवरों से मिलना छोड़ दिया
अब खाते हैं धक्के यादव रोज यूं ही इन गलियों में
सुबह में कलियों ने जब ओस का घूंघट ओढ़ लिया
-- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है