कापीराइट गीत
जब मेरे घर आंगन में सर्दी की रूत आई
औढ़ पहन कर हम बैठे जर्सी और रजाई
जब ठण्डी हवाओं ने अपना घूंघट खोला
सर्दी का एहसास हुआ जब दरवाजा खोला
धीरे-धीरे इस सर्दी ने ली ठण्डी अंगड़ाई
औढ़ पहन कर हम बैठे जर्सी और रजाई
रातें हो गई लम्बी, दिन के पंख कतर के
सूरज भी रह जाता है धुंध में आएं भर के
हिम के गिरते ही ये शीत लहर चली आई
औढ़ पहन कर हम बैठे जर्सी और रजाई
सर्दी के इस मौसम में सूरज भी शर्माता है
धुंध और बादल के घूंघट में छुप जाता है
कोहरे ने कैसी चादर ये देखो आज बिछाई
औढ़ पहन कर हम बैठे जर्सी और रजाई
तन सर्दी में ठिठुरे, हैं मजदूर किसानों के
सीमा पर पहरा देते, उन मासूम जवानों के
उन सबने कैसे ना जाने अपनी रात बिताई
औढ़ पहन कर हम बैठे जर्सी और रजाई
इतना ना डर सर्दी से तू यादव अपने घर में
बच के इससे चलता जा यूंही हंसी सफर में
देख कहीं ना हो जाए महफिल में रुसवाई
औढ़ पहन कर हम बैठे जर्सी और रजाई
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है