मेरा परिन्दों से लगाव, उनका भी लगता मुझसे।
मेरे आँगन मे उतर आते, धीरे से मिलने मुझसे।।
सुबह होते ही चहचहाहट, गूँजने से उठ जाता।
बिना चुनाये रह न पता, कुछ दिनो से दूर उनसे।।
घर वाले अब मुझको, फरिश्ता समझते 'उपदेश'।
अठखेलियाँ करते देखते, कुछ वक्त खेलता उनसे।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद