पत्ता पत्ता इस जीवन का,
जब बिखर रहा निज टहनी से
वो चमक सके इसके बावत
जब तिल तिल टूट रहा पत्थर ,
युग की पीड़ा संघर्षों से
सपने टूटे जब नींदों से ,
जब ढला जा रहा एक देव ,
वह पत्थर जाने कौन बना ।
बस एक बसंत की आशा में ,
जीवन त्यागा जब एक पेड़
उस वक्त कहा थे वो प्रीतम
जो धूप की छांव में संग आए
कितने एकाकी दर्द सहे,
कितने तापों को निगल गए
वह कूट काल सा तीखा विष
जो निगल रहे बन वैरागी
वो राजभोग के प्यासे तुम
उस वक्त कहा थे मेरे यार
माना युग का अब राम नहीं
वह शिव भी एक असीम रहा
उस चंद्र की पावन शीतलता
तुम सोए थे या खोए थे
कितने बलिदान सहने वाले,
उस देव को बस तुम झुका शीश
जीवन को किया समर्पित जो
उस पेड़ की शीतल छांव देख
उस वक्त कहां तुम खोए थे
जब आया था वो तड़ित वात:
सुख में साथी बनने वालो
एक बूंद गिराते जो उस दिन
वो विष भी बनता पीयूष सरल
एक उमा गरल को छूती जब
उस एकाकी के वाशी से
सुंदर फिर अब तुम कैसे
वह सत्य सदा अविनाशी अब
वह ही शिव कैलाशी अब
एक एक रामों से तुम पूछो
सीता की महता होती क्या
एक एक अर्जुन से जा पूछो
केशव की महता होती क्या
एक एक शंभु से फ़िर पूछो
क्यों सती वियोग में व्याकुलता
जब पतझड़ आता मेरे यार
एक बूंद भी अमृत बन जाता
एक बूंद भी अमृत बन जाता
संघर्ष युद्ध में मेरे यार
एक मित्र ही केशव बन जाता
उस तपिश की ज्वाला से न जले
बस उमा का आंचल बचलाता
लेखक तेजप्रकाश पांडे द्वारा लिखित