अंतर्मन जब लगा रूठने,
स्वप्न एक-एक लगे टूटने,
भाव धीरे लगे जब छूटने,
फिर मुझको मुझमें सहेज कर,
रखा केवल तुम्हारे साथ ने।
स्मृतियाँ एकैक गई गुजर,
दृश्य आने लगे सब उभर,
तुम्हें ढूँढने लगी जब नज़र,
फिर मुझको मुझमें सहेज कर,
रखा केवल तुम्हारे साथ ने।
तुम्हें तुम्हारे लिए दूर किया,
निज कर से हृदय चूर किया,
विरह रूपी गरल को पुर पिया,
फिर मुझको मुझमें सहेज कर,
रखा केवल तुम्हारे साथ ने।
🖊️सुभाष कुमार यादव