उल्लू जागे- डॉ एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात"
कर तोड़ मरोड़,
अपनाकर नये हथकंडे से।
विराजमान है सिंहासन पर,
कल्लू कालिया कंडे से।
प्रभात हुआ नहीं,
उल्लू जागे मुस्कंडे से।
अंधियारी में तीर चला,
पड़ने लगे डंडे से।
अन्याय हो रहा,
मौन पड़े तुम संडे से।
अपना मुंह खोलो,
कब तक खड़े रहोगे झंडे से।
दुर्योधन ललकार रहा,
वक्त तुम्हें पुकार रहा।
भरी सभा में,
ताने तुम्हें मार रहा ।
अर्जुन बन,
लगा मछली की आंख पर निशाना।
जीना है तुझे,
अब क्यूं लडखडाना।