कारवां गुजरने पे कुछ देर गुबार रहता है
जहन में कोई नाम चंद रोज याद रहता है
मिट गया है जो कभी लौटकर आया नहीं
याद के साये में बस कुछ इंतजार रहता है
अचानक अगर नींद टूटी तो सिहर जाएंगे
मन में उठता है धुंआ कुछ खुमार रहता है
राहतें मिलती नहीं हैं खुद कभी भी दर्द से
कुछ दवा कुछ दुआओं का शुमार रहता है
दास दुनिया में जीना भी मुहाल आजकल
आदमी ही बेवजह सबका शिकार रहता है II