काेई भी सख्स मेरी कविता छापता नहीं
मैं कभी अागे बढूं ऐसा मुझे लगता नहीं
मेरी कविता न काेई पढ रहा न देख रहा
मैं यूं हीं कविता लिख रहा.
ख्वाईस मेरी ख्वाईस ही रह गई
कविता लिख लिख कर उमर गुजर गई
जिस जिस के अागे कविता वाचन किया
वेह सबने मुझे दर्जा एक पागल का दिया
काेई भी सख्स मेरी कविता छापता नहीं
मैं कभी अागे बढूं ऐसा मुझे लगता नहीं
मन में ऐसी सनक गड गई
कविता लिखने की अादत सी पड गई
कविता मेरे शिर पर चढी है
मेरे लिए कविता ही सब से बढी है
काेई भी सख्स मेरी कविता छापता नहीं
मैं कभी अागे बढूं ऐसा मुझे लगता नहीं
मेरी कविता की भाव काेई जानता नहीं
मुझे भी काेई मानता नहीं
फिर भी सब की कविता पढूंगा अाैर देखूंगा
मरते दम तक मैं ताे कविता लिखूंगा
मरते दम तक मैं ताे कविता लिखूंगा.......
----नेत्र प्रसाद गौतम