जिंदा हूं तो जिंदा रहने दो,
ये चेहरा है तो कुछ तो कहने दो,
तन का हूं तो मन का कहने दो,
मुझको भी तो मुझसे कहने दो,
मांगा हूं तो कुछ तो लेने दो,
मेरा कुछ नहीं तो कुछ तो रहने दो,
पर्दा है तो पर्दा रहने दो,
महंगा है यह सपना चलने दो,
भागा हूं तो अब छिपने दो,
किरदार-ए-जमीं का होने दो,
काँटा है कर्म का तो चुभने दो,
घाव को ही मरहम होने दो।।
- ललित दाधीच