घुट - घुट के जिए जा रहे हैं हम,
दर्द जो इतना सहे जा रहे हैं हम।
ये दर्द का समंदर अपनों ने ही दिया है,
जिसे ख़ामोशी से पिए जा रहे हैं हम।
कब तक सहना होगा,
कब तक चुप रहना होगा।
ख़ामोश हैं इसलिए
क्योंकी झूठ बोलना हमे पसंद नहीं,
और सच इन्हें बर्दाश्त नहीं।
कुछ कहें तो भी ग़लत हम,
कुछ ना कहें तो भी ग़लत हम।
कहे तो कयामत आ जाए,
और ना कहें
तो हमारी आंखें अश्कों से भर जाए।
ऐसे दो राहों पर खड़े हम कि
जी भी नहीं सकते
और मर भी नहीं सकते।
इन बेकदरों के बीच में
हम रो भी नहीं सकते
और हॅंस भी नहीं सकते।
परायों को तो हर मसले में मात दी हमने,
हारे तो बस अपनों की ही बे -रूख़ी से।
परायों का दिया कोई ग़म नहीं मेरी ज़िंदगी में,
ग़म बस अपनों ने दिए हैं।
"रीना कुमारी प्रजापत"
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




