ये ज़िंदगी है, मगर जीने का अंदाज़ मालूम नहीं है, जो रूह पर क़र्ज़ है, उस दर्द का आग़ाज़ मालूम नहीं है।
जिसे वजूद समझते हो, वो मिट्टी का इकरार फ़क़त है, असली वो साँस है जो ठहरती है, वो साज़ मालूम नहीं है।
वो तन्हाई भी देखी है जहाँ ख़ुदा ने पलटकर न देखा, यहाँ सब पास हैं, पर क़रीबी का कोई राज़ मालूम नहीं है।
हमने बाज़ार में तन्हाई की कीमत को अदा कर दिया है, मगर इस ज़ात के बेचने का कोई रिवाज़ मालूम नहीं है।
ये लहजा जो झूठा है, ये आँखों में जो ख़ौफ़ रवाँ है, यक़ीन मानो, ये इंसान है, इसे परवाज़ मालूम नहीं है।
मोहब्बत भी तमाशा है, जुनून भी फ़रेब है ज़माने में, यहाँ सब कुछ दिखावा है, कोई गहरा अंदाज़ मालूम नहीं है।
गुनाह ये है कि आईना सच बोलता है हर बार, ख़ुद को देखने के लिए आँखों में लिहाज़ मालूम नहीं है।
ज़रा देर से समझो इशारा ये नदियों के बहने का, वो मंज़िल तो ख़ुद में है, बाहर कोई दरवाज़ा मालूम नहीं है।
जिसे तालीम समझते हो, वो बस ज़ेहन को गुमराह कर गई, इंसानियत की किताबों का कोई अल्फ़ाज़ मालूम नहीं है।
ये नक़ाबों की दुनिया है, यहाँ रूह को ख़ाली रखा गया, जिस्म तो बे-मोल है, ज़मीर का कोई मूल्य मालूम नहीं है।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




