कापीराइट गजल
एक चूहा दौङ है जिन्दगी
ना जाने ये कौन सी, दौङ है जिन्दगी
पा, न सके जिसे, वो छोर है जिन्दगी
दौडते रहे सदा हम भी चूहों की तरह
ना, जाने कैसी, चूहा दौङ है जिन्दगी
कोई भी, जीत न पाया, इस दौङ को
किस, मंजिल की ये, दौङ है जिन्दगी
निराश और थके हुए, लग रहे हैं सब
किस मुकाम पर यह दौङ है जिन्दगी
इन, मुरझाए चेहरों से, जरा पूछो तुम
मंजिल, का कौन सा, रोङ है जिन्दगी
कोई हंस के चलता है, तो कोई रोकर
ना जाने यह कौन सा, दौर है जिन्दगी
कैसा संघर्ष है यह, मालूम नहीं यादव
गम है खुशी या कुछ, और है जिन्दगी
- लेखराम यादव
(मौलिक रचना)
सर्वाधिकार अधीन है