इस बार राह-ए-इश्क में खुशी मिल गई।
उसका संग मिला लम्बी सैर भी मिल गई।।
जब शाम को घूमकर घर लौट कर आया।
उस तन की खुशबू में रूहानियत मिल गई।।
दिलो-दिमाग समझ बैठा सराए उसी को।
ठहर कर समझा 'उपदेश' जन्नत मिल गई।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद