हवा का जोका भी अग़र कही नीकलता हे
समन्दरों के लहेजे मे ही गरजता हे
खुली हवा में दीये यूही कभी जलते नहीं
कोई तो हे जो हवाओ पे नजर रखता हे
सीधेसादो को यहाँ कोई पूछता ही नहीं
कही गलती ना करो तो किस लीये डरता हे
अब देखना हे यहां नदिया भी हे समंदर भी
वो मेरी प्यास को कीसके नाम करता हे
जमीं किसी के नाम हो कोई मतलन ही नहीं
फैसला जब ऊपरी अदालतों का उतरता हे
के बी सोपारीवाला