भ्रम में उलझा हुआ”मैं”
फर्ज़ को हक़ मान लिया,
कर्ज़ को फर्ज़ बता दिया।
क्या फितरत है इन्सान की
हर भावना को स्वार्थ के तराजू में रख दिया..
कुछ पौधे और फूलवारी क्या सजायी,
उन्हें तोड़ने का अपना हक समझ लिया।
किसी को काम, मान, धन क्या दिया,
उस पर अधिकार जताना अपना हक समझ लिया।
क्या कहें?अहंकार से सुशोभित इंसान ने
दिल को छोड़,दिमाग को हथियार बना लिया..
ममता की छाँव दी जिस माँ ने,
उस प्यार को कर्तव्य कह दिया।
स्वावलंबी बनाया जिस पिता ने,
उनकी दी छत को ज़िम्मेदारी बता दिया।
क्या कहें? अज्ञानता में डूबे इन्सान ने,
अपनी हार को ही जीत का साहिल समझ लिया..
वन्दना सूद
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