ये जातिवाद न होती,
तो क्या बात होती ll
सबकी मोहब्बत उनकी बाहों में होती ll
न कोसी जाती भगवान को,
न कोसी जाती समाज को ll
न रहती मोहब्बत किसी को अधूरी,
न होती उनकी गिनती बेवफाओं में ll
अगर जातिवाद न होती,
तो क्या बात होती ll
सबकी मोहब्बत उनकी बाहों में होती ll
न भागती किसी की बेटी,
न उसकी बदनामी होती ll
न माँ बाप की परवरिश पर,
ऊंगली उठाई जाती ll
न करते गैरो शिकायत उनकी ,
न जलील करती समाज उनको ll
ये जातिवाद न होती,
तो क्या बात होती ll
सबकी मोहब्बत उनकी बाहों में होती ll
न झूलती फांसी पर ,
न उनकी अवरु में दाग लगती ll
न बहकाती उनकी कदम,
न डरती वो अपने माँ बाप से ll
न करती वो घरवालों से बगावत,
न भागती वो अपने माँ-बाप के घर से ll
ये जातिवाद न होती,
तो क्या बात होती ll
सबकी मोहब्बत उनकी बाहों में होती ll
न बेवफाओं का नाम मिलता,
न उनकी अवरु पर,
कोई इल्ज़ाम लगता ll
खुश रहती वो ,
अपनी मोहब्बत के साथ ll
न समाज से उनको डर होता ll
ये जातिवाद न होती ,
तो क्या बात होती ll
सबकी मोहब्बत उनकी बाहों में होती ll
लेखक
शिवम् जी सहाय
पटना (बिहार)