जाने क्या ढूँढता है
ये मेरा दिल —
हर जवाब में एक अधूरा सवाल लिए
हर मुस्कान के पीछे
एक चीख़ छुपाए घूमता है।
मैं थक गया हूँ
तेरे इम्तिहानों से, ज़िंदगी —
हर सुबह
एक नया चेहरा पहनाती है तू
और हर रात
वही पुराना अकेलापन
बिस्तर के पास बैठा रोता है।
तू मुझसे क्या चाहती है?
मैंने रिश्तों की चोट खाई,
मैंने ख़ुद को खोकर भी
तेरी उम्मीदों की राख में
हाथ सेकने की कोशिश की।
पर तू हर बार
और खाली कर गई मुझे।
कभी लगता है —
तू मेरी माँ नहीं,
मेरी जल्लाद है।
जो हर दिन मुझे
थोड़ा-थोड़ा काटती है
और कहती है —
“चलो, जियो… मुस्कराओ…”
तेरे पास क्या है
जो मुझे लौटा सके?
मेरी नींदें?
मेरे सपने?
या वो ‘मैं’
जिसे तूने रोज़-रोज़
समझौते में गलाया?
ज़िंदगी,
अगर तुझे
मुझसे कुछ चाहिए —
तो ले जा मेरा नाम भी,
मेरी साँसें भी,
पर मुझे
मुझसे वापस कर दे।