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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

जमाली

प्रयास सधा सा करत रहे
पर हो ही गए इंगोज जमाली
घूमत रहि गए हरियाणे में
पर दई न सके इक रोज जमाली

पैरन में उनके है चक्र लगा
नाप लेत मौजा औ गँउआँ
के हौ गांव के बचल भला
जे जानत ना हो उनके नँउआँ
खुद के देत नहीं है अबहूँ
समझदारी के डोज जमाली
घूमत रहि गए हरियाणे में
पर दई न सके इक रोज जमाली

भैलेंटाइन पर हिय में कारबाईन
धुक - धुक गोली दागत बा
दिलवा उनकर तन्हाई में
लभ यू के बोली माँगत बा
आन्हर - भकचोन्हर कउनो रहे
अब कई दिहे परपोज जमाली
घूमत रहि गए हरियाणे में
पर दई न सके इक रोज जमाली

रोज...चटक्का लाल लिए
खोजत हैं कि के - के दीं
पोटहिया, चोटहिया दुनो बा ख़डी
एके दीं या ओके दीं
विचारत रहीं गैन हक्का होइ के
हवें दुनियां के अद्भुत खोज़ जमाली
घूमत रहि गए हरियाणे में
पर दई न सके इक रोज जमाली

हक्का नुडल खाई के भईया
ख़डी दुपहरी घूमत बाटन
बप्पा स्वागत कइले रहलन
हुच्चा, मुक्का, झापड़ औ लातन
आखिर भला कैसे पईहेन
परम् अद्भुत इमरोज जमाली
घूमत रहि गए हरियाणे में
पर दई न सके इक रोज जमाली
-सिद्धार्थ गोरखपुरी




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (1)

+

उपदेश कुमार शाक्यावार said

बहुत सुंदर रचना 🙏🙏

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