वापस आए राम अयोध्या, साथ में थीं सीता रानी,
गूंज रही थी जय की ध्वनि, सजी हुई थी राजधानी।
पर जन-जन की बातों ने, चुभन सी एक आग लगाई,
प्रेम खड़ा था द्वार खड़ा, पर मर्यादा ने राह दबाई।
राजतिलक तो हो गया, पर मन में पीर समाई,
राजा बनकर भूल न पाए, सीता संग हर इक कहानी।
बोले राम — "मैं न्याय करूँगा", दिल का दर्द छुपा बैठे,
सीता को वन फिर भेज दिया, खुद आँसू पीकर रह बैठे।
पर क्या सच में दूर हुए थे? सीता राम से जुदा हुई?
या दो तन होकर भी वो आत्मा से एक सदा रही?
हर वन की मिट्टी कहती है — राम का नाम लिया उसने,
हर फूलों की खुशबू बोली — राम का प्रेम जिया उसने।
राम भी हर रात अकेले, सीता के संग स्वप्न सजाते,
दीप जला कर चित्र निहारें, मन में गीत वही दोहराते।
शब्दों में जो न कह सके, आँखों से बहते रहते,
त्याग नहीं थी दूरी उनकी — प्रेम में सच्चे, सबसे कहते।
💫 संदेश
जब प्रेम आत्मा से जुड़ा हो, तब दूरी केवल संसार का भ्रम होती है। राम और सीता ने यह सिखाया कि प्रेम त्याग में भी जीवित रह सकता है, और मर्यादा में भी अमर हो सकता है।