मैंने उसे
छूना चाहा था —
उंगलियों से नहीं,
आँखों से नहीं,
बल्कि उस मौन से
जो मेरी रूह की तह में पलता है।
वो चला गया—
जिस्म की तरह,
एक दरवाज़ा बंद करके,
पर मैं जानता था —
प्रेम दरवाज़े से नहीं जाता।
जिसे चाहा,
वही मेरी धड़कनों की परछाईं बन गया —
कोई नाम नहीं,
कोई तस्वीर नहीं,
बस साँसों में घुली हुई
एक खुशबू की तरह।
जब मैं रोया,
तो मेरी पीठ पर
कोई अदृश्य हथेली थी —
जो शायद उसी की थी,
या फिर
उस अनन्त की,
जिसे मैंने प्रेम में पाया था।
लोग पूछते हैं —
“क्या अब भी साथ है वो?”
मैं मुस्कुरा देता हूँ —
क्योंकि
मैं रोटी खाते वक़्त,
चलते वक़्त,
यहाँ तक कि नींद में भी
उसे सुनता हूँ…
जैसे कोई साया नहीं,
बल्कि मेरी ही रूह का नाम बन गया हो।
हाँ —
जिसे चाहा,
वही रूह बनकर
हर वक़्त मेरे साथ रहता है।
-इक़बाल सिंह “राशा”
मनिफिट, जमादपुर, झारखण्ड

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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