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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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कविता की खुँटी

                    

इक़बाल सिंह “राशा” की कविता “तू किसी शाख़ पे था शायद…”

तू किसी शाख़ पे था शायद —
जब पत्ते मेरे माथे से यूँ छूकर गुज़रे
जैसे किसी ने बिना पूछे
दुआ दे दी हो।

मैंने हवा से पूछा था —
“ये किसके क़दमों की ख़ुशबू है?”
उसने चुप रहकर
तेरा नाम मेरी धड़कन में रख दिया।

बादल बिखरे थे उस रोज़
कुछ लफ़्ज़ लेकर —
पर बरसते हुए
वो सिर्फ़ तेरा एहसास छोड़ गए।

नदी जब गुज़री पास से,
मैंने सिर्फ़ इतना कहा:
“क्या कभी किसी ने तुझे छूकर
तेरे भीतर अपना नाम बहाया है?”
उसकी चुप्पी में
मेरी तलाश का जवाब डूब गया।

फूलों की पंखुड़ियाँ खुलीं —
बिना मौसम, बिना वजह।
किसी ने तेरे नाम की रौशनी
उन पर बिखेर दी थी शायद।

चाँद उस रात देर तक ठहरा रहा
मेरी आँखों में,
जैसे वो जानता हो
कि कोई है, जो
मुझसे भी ज़्यादा उजला है।

और तू…
हर उस जगह था
जहाँ मैंने तुझे नहीं देखा।
हर उस पल में
जहाँ मैंने तुझे नहीं पुकारा।

ऐ बेआवाज़ रहमत!
मैं तुझसे कुछ नहीं माँगता —
सिर्फ़ एक बार…
अगर कभी तेरा मन हो —
किसी चुप साँस में
मेरे नाम की एक आह भर देना।

मैं जान जाऊँगा —
कि तू वही है
जिसे मेरी रूह
हर जन्म में अनकहे शब्दों से पुकारती आई है।

इक़बाल सिंह “राशा”
मनिफिट, जमशेदपुर, झारखण्ड




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (6)

+

शिवचरण दास said

बहुत खूब. ..अति सुन्दर

वन्दना सूद said

क्या लिखें sir 🙏🙏हमारे शब्दों में इतनी गहराई नहीं कि आपके इस भाव पर कुछ लिख पाएँ 🙌🏻🙌🏻

आलम-ए-ग़ज़ल - परवेज़ अहमद said

आपकी ख़ामोश कविता वो सब कह जाती हैं जो कह पाना अल्फ़ाज़ के लिए मुमकिन नहीं! और ये ख़ामोश सदाऍं पढ़ने वाले वजूद पे छा जाती हैं! आपके लिखने का अंदाज़ सबसे अलग है और क़ाबिल-ए-तारीफ़ है! 👌👌👏👏❤️

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

उफ़्फ़... क्या ही रूहानी एहसास है!
हर पंक्ति जैसे दिल की धड़कनों पर रखी कोई नज़्म हो गई हो।
इश्क़ को इतनी ख़ामोशी से महसूस किया है आपने —
जैसे किसी दुआ ने खुद को शायरी बना लिया हो।

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

प्रथम पंक्ति से लेकर अंतिम पंक्ति तक अलौकिक शक्ति की मौन सत्ता को महसूस कराती आपकी ये अद्भुत रचना, सचमुच, पाठकों के अंतर्मन को छू लेती है। पढ़कर ऐसा लगता है कि आप कलम से लिखते नहीं बल्कि अंतर्मन की आवाज को कागज पर छाप देते हैं।👌👌🙏🙏राशा जी,आपके चाहने वालों की भीड़ में किसी कोने में बैठा एक प्रशंसक हूं।🌹🌹

इक़बाल सिंह “राशा“ said

आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद
मनोज समदिल जी मुझ में ऐसा कुछ भी नहीं है यह सिर्फ आपका बड़पन्न और साहित्य की अच्छी समझ है मैं बहुत तुच्छ सा व्यक्ति हूँई पुनः धन्यवाद और आप सब को सादर प्रणाम

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