संजोयी पूँजी ढह गई
न जाने ?
किस भाव से बनाए गए होंगे ये बंगले,
जो आज ढहकर व्यापार में बदलते जा रहे हैं।
कितनी तपस्या से संजोयी गई होगी ये पूँजी,
वर्षों की सेवा और प्रेम से लगाए होंगे वो पौधे-
जो आज पेड़ बनकर फल, फूल और छाया दे रहे हैं
मगर आज,कुल्हाड़ी की मार सहते,
एक एक कर काटे जा रहे हैं।
भावनाओं की दहलीज़ पार कर,
आज वही बंगले व्यापार में ढलते जा रहे हैं ..
वन्दना सूद
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